
नीम करौली बाबा के आश्रम का नाम कैंची धाम ही क्यों पड़ा, कुछ और क्यों नहीं, दिलचस्प है वजह
Neem Karauli Baba and Kainchi Dham – उत्तराखंड में हल्द्वानी से भवाली फिर अल्मोड़ा राजमार्ग पर नीम करौली बाबा का आश्रम कैंची धाम है. इसे आध्यात्मिक मान्याताओं का केंद्र माना जाता है. लेकिन, कभी आपने सोचा है कि उनके आश्रम का नाम कैंची धाम ही क्यों पड़ा कुछ और क्यों नहीं? साथ ही जानते हैं कि कैंची धाम में श्रद्धालु कंबल क्यों चढ़ाते हैं और कैंची धाम को स्थापित करने में नीम करौली बाबा की मदद किसने की थी?
बाबा नीम करौली के आश्रम कैंची धाम को आध्यात्मिक मान्यताओं का केंद्र माना जाता है. फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग और ऐपल के संस्थापक स्टीव जॉब्स के अलावा दुनियाभर से कई दिग्गजों के कैंची धाम पहुंचने तथा जीवन को बदलने वाले अनुभवों की कहानियां प्रसिद्ध हैं. नीम करौली बाबा पहली बार 1961 में कैंची धाम आए थे. उन्होंने मित्र पूर्णानंद की मदद से 15 जून 1964 को कैंची धाम की स्थापना की थी.
नीम करौली बाबा की तस्वीरों को ध्यान से देखें तो ज्यादातर में वह कंबल ओढ़े हुए नजर आते हैं. इसीलिए श्रद्धालु कैंची धाम में कंबल चढ़ते हैं. कैंची धाम के स्थापना दिवस पर नीम करौली बाबा को श्रद्धालु मालपुए का भोग लगते हैं. इस भोग को तैयार करने के लिए हर साल मथुरा से दर्जनों कारीगर कैंची धाम पहुंचते हैं. धाम का स्थापना दिवस हर साल 15 जून को मनाया जाता है. धाम में हनुमानजी और बाकी देवी-देवताओं की मूर्ति स्थापना भी अलग-अलग वर्षों की 15 जून को ही की गई है.
बाबा नीम करौली ने 15 जून की तारीख को ही कैंची धाम के प्रतिष्ठा दिवस के लिए तय किया था. उन्होंने 10 सितंबर 1973 को शरीर त्यागकर महासमाधि ले ली थी. उनके मासमाधि लेने के बाद उनके अस्थिकलश को धाम में ही स्थापित किया गया था. इसके बाद 1974 से बड़े स्तर पर मंदिर का निर्माण कार्य शुरू किया गया. कहा जाता है कि महज 17 साल की उम्र में ही बाबा नीम करौली को ईश्वर के बारे में विशेष ज्ञान प्राप्त हो गया था.
कैंची धाम आश्रम की ओर जाने वाली सड़क पर कैंची के फलकों की तरह दो तीखे मोड़ हैं. इसी वजह से धाम का नाम कैंची धाम पड़ा. नीम करौली बाबा हनुमानजी को अपना आराध्य मानते थे. इसीलिए उन्होंने अपने जीवनकाल में हनुमानजी के 108 मंदिरों का निर्माण कराया. बाबा नीम करौली के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने हनुमानजी की उपासना करके कई सिद्धियां हासिल की थीं. वह आडंबरों से दूर रहते थे और किसी को भी अपने पैर नहीं छूने देते थे. आज भी लोग उन्हें भगवान हनुमान का अवतार मानते हैं.
कहा जाता है कि नीम करौली बाबा चमत्कारिक सिद्धियों के जरिये लोगों की परेशानियों का निवारण कर देते थे. बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले में अकबरपुर गांव में हुआ था. आश्रम की स्थापना के बाद चमत्कारों की कहानियां विदेश तक पहुंच गई थीं. नीम करौली बाबा से जुड़ा एक किस्सा काफी सुनाया जाता है. कहा जाता है कि कैंची धाम में एक बार भंडारा चल रहा था और घी कम पड़ गया. बाबा ने नदी से पानी भरकर लाने को कहा. भक्त बड़े-बड़े कनस्तर में पानी भरकर लाए और पानी घी बन गया.बाबा नीम करौली के चमत्कारों की कहानियों में एक और कहानी काफी सुनाई जाती है. कहा जाता है कि बाबा का एक भक्त गर्मी के कारण तप रहा था. उसे तेज बुखार हो गया था. शरीर का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा था. बाबा नीम करौली ने उस भक्त को तपती धूप से बचाने के लिए बादलों की छतरी बनाकर उसे वहां तक पहुंचाया, जहां उसको जाना था